ए, एस, ख़ान
मार्किट आधारित पूंजीवादी व्यवस्था मे कंपीटिशन कीमतों को कंट्रोल करने और उपभोक्ताओं को बेहतर सर्विस उपलब्ध कराने का आधारभूत नियम है। एक USA का उद्योगपति था एंड्रू कार्नेगी। आज के सबसे अमीर आदमी अमेजन कंपनी के मालिक जेफ बिजो से अगर वक़्ती तुलना करें तो दुगना अमीर। उसका स्टील का व्यापार था। एक ओर तेल बेचने वाला था रॉकफ़ेलर उससे भी अमीर। जब ये उधोगपति व्यापार मे बेहिसाब अमीर हो गए तो US सरकार ने उन्हें समानता या कंपीटिशन के लिए खतरा मानते हुए उनकी कंपनियो के टुकड़े टुकड़े कर दिये। ऐसा ही अमेरिकन टोबैको कंपनी के साथ किया। अभी कुछ सालो पहले अमेरिका की सबसे बड़ी इंटरनेट कंपनी AT & T के भी 7 टुकड़े कर दिए गए। ऐसा ही केस अमेरिकन कोर्ट बड़ी बड़ी कंपनियों जैसे IBM, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल आदि के खिलाफ लेकर आई। जब जब कंपनियों ने एकाधिकार किया तो सिस्टम को ईमानदारी से चलाने, ग्राहकों को बचाने के लिए वहां सरकार ने उद्योगपतियों/कंपनियों के खिलाफ खड़े होकर संपत्ति पर एकाधिकार घटाया।
अभी भारत मे कुछ कानूनों को लेकर कंपनियो/सरकार के खिलाफ एक जनप्रतिरोध जारी है। किसानों को कहा जा रहा है मार्किट मे उतरो। खुद बेचो। अच्छी बात है। भारत के 82% किसान ढाई एकड़ से छोटे है। जानते है उन्हें किसका मुकाबला करना है? Rs.1,40,00,00,00,000/- का तो Fortune नामक सिंगल ब्रांड है, अडानी-विल्मर का। आटे मे मसाले मिलाकर मैग्गी या आटे मे दूध मिलाकर सेरेलक बनाने वाली नेस्ले की नेट वर्थ है Rs. 24,00,00,00,000/-। 2 हजार से ऊपर तो उसके ब्रांड्स है 🙈। गांव मे आम पशुपालक खर्चा ओर मेहनत करके 27 Rs लीटर दूध बेचता है जबकि अमूल वही दूध बिना गाय भैंस पाले शहरियों को 54 Rs लीटर बेच देता है 😜 उसकी हैसियत है 52 हजार करोड़।
किसानों क्या सोच रहे हो? कृषि मार्किट पूंजीवाद के लिए खोल दिया गया है। तुम्हे लगता है समानता का अधिकार देने के लिए सरकारें इन कंपनियों/व्यापारियों के खिलाफ खड़ी होंगी? दुनिया मे संपत्ति की सबसे अधिक असमानता रूस मे है। मतलब मुट्ठीभर कुलीनों के पास सारे देश की संपत्ति है। और मोदी से लड़ने वाले RBI के गवर्नर रघुराम राजन ने 4 साल पहले कहा था कि अगर भारत चंद व्यापारियों द्वारा कब्जाया गया कुलीनतंत्र नही है तो फिर क्या है? ओर 4 सालो मे तो अम्बानी अडानी उस समय से भी कई गुणा बढ़ चुके।
ओर तुम्हारी बात उठाने के लिए कोई नही होगा? नही क्योंकि वहां भी मोनोपोली है। 80 करोड़(टोटल का 95 %) TV देखने वाले दर्शकों तक अकेले रिलायंस के 76 TV चैनल्स की पहुंच है। आंदोलन मे किसानों की दुर्गति से आहत होकर संत राम सिंह ने जान दे दी। कहीं कोई चर्चा? बल्कि अम्बानी ने तो पिछले साल मोदी सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर कड़े प्रतिबंध लगाने की हिमायत की थी। यें जब चाहे इंटरनेट बंद करके आंदोलन को विमर्श से ही पूरी तरह गायब कर दें।
बस मोदी जी के आशीर्वाद से ढाई एकड़ जोतने वाले किसान को इन्ही नेस्ले, अमूल, फार्च्यून, रिलायंस से कॉम्पिटिशन करना है।
(या तो किसान आंदोलन के नेताओ को एकजुट रखकर MSP को कानूनी अधिकार बनवा लो वरना सच ऊपर लिख दिया है।